Aarti Lyrics - आरती संग्रह , हिंदू देवी-देवताओं की गीत आरती संग्रह


    1. ॐ जय जगदीश हरे आरती -Aarti: Om Jai Jagdish Hare


    ॐ जय जगदीश हरे,

    स्वामी जय जगदीश हरे ।

    भक्त जनों के संकट,

    दास जनों के संकट,

    क्षण में दूर करे ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    जो ध्यावे फल पावे,

    दुःख बिनसे मन का,

    स्वामी दुःख बिनसे मन का ।

    सुख सम्पति घर आवे,

    सुख सम्पति घर आवे,

    कष्ट मिटे तन का ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    मात पिता तुम मेरे,

    शरण गहूं किसकी,

    स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।

    तुम बिन और न दूजा,

    तुम बिन और न दूजा,

    आस करूं मैं जिसकी ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    तुम पूरण परमात्मा,

    तुम अन्तर्यामी,

    स्वामी तुम अन्तर्यामी ।

    पारब्रह्म परमेश्वर,

    पारब्रह्म परमेश्वर,

    तुम सब के स्वामी ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    तुम करुणा के सागर,

    तुम पालनकर्ता,

    स्वामी तुम पालनकर्ता ।

    मैं मूरख फलकामी,

    मैं सेवक तुम स्वामी,

    कृपा करो भर्ता॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    तुम हो एक अगोचर,

    सबके प्राणपति,

    स्वामी सबके प्राणपति ।

    किस विधि मिलूं दयामय,

    किस विधि मिलूं दयामय,

    तुमको मैं कुमति ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,

    ठाकुर तुम मेरे,

    स्वामी रक्षक तुम मेरे ।

    अपने हाथ उठाओ,

    अपने शरण लगाओ,

    द्वार पड़ा तेरे ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


    विषय-विकार मिटाओ,

    पाप हरो देवा,

    स्वमी पाप-कष्ट हरो देवा ।

    श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

    श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

    सन्तन की सेवा ॥


    ॐ जय जगदीश हरे,

    स्वामी जय जगदीश हरे ।

    भक्त जनों के संकट,

    दास जनों के संकट,

    क्षण में दूर करे ॥


    2. हनुमान आरती  -आरती कीजै हनुमान लला की -Hanuman Aarti- Aarti kije Hanuman Lalla ki


    ॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥

    मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,

    जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥

    वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,

    श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥


    ॥ आरती ॥

    आरती कीजै हनुमान लला की ।

    दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥


    जाके बल से गिरवर काँपे ।

    रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥

    अंजनि पुत्र महा बलदाई ।

    संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

    आरती कीजै हनुमान लला की ॥


    दे वीरा रघुनाथ पठाए ।

    लंका जारि सिया सुधि लाये ॥

    लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।

    जात पवनसुत बार न लाई ॥

    आरती कीजै हनुमान लला की ॥


    लंका जारि असुर संहारे ।

    सियाराम जी के काज सँवारे ॥

    लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।

    लाये संजिवन प्राण उबारे ॥

    आरती कीजै हनुमान लला की ॥


    पैठि पताल तोरि जमकारे ।

    अहिरावण की भुजा उखारे ॥

    बाईं भुजा असुर दल मारे ।

    दाहिने भुजा संतजन तारे ॥

    आरती कीजै हनुमान लला की ॥


    सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।

    जय जय जय हनुमान उचारें ॥

    कंचन थार कपूर लौ छाई ।

    आरती करत अंजना माई ॥

    आरती कीजै हनुमान लला की ॥


    जो हनुमानजी की आरती गावे ।

    बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥

    लंक विध्वंस किये रघुराई ।

    तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥


    आरती कीजै हनुमान लला की ।

    दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

    ॥ इति संपूर्णंम् ॥


    3. आरती: जय जय तुलसी माता -Aarti: Jai Jai Tulsi Mata

    जय जय तुलसी माता,

    मैया जय तुलसी माता ।

    सब जग की सुख दाता,

    सबकी वर माता ॥

    ॥ जय तुलसी माता...॥



    सब योगों से ऊपर,

    सब रोगों से ऊपर ।

    रज से रक्ष करके,

    सबकी भव त्राता ॥

    ॥ जय तुलसी माता...॥


    बटु पुत्री है श्यामा,

    सूर बल्ली है ग्राम्या ।

    विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,

    सो नर तर जाता ॥

    ॥ जय तुलसी माता...॥


    हरि के शीश विराजत,

    त्रिभुवन से हो वंदित ।

    पतित जनों की तारिणी,

    तुम हो विख्याता ॥

    ॥ जय तुलसी माता...॥


    लेकर जन्म विजन में,

    आई दिव्य भवन में ।

    मानव लोक तुम्हीं से,

    सुख-संपति पाता ॥

    ॥ जय तुलसी माता...॥


    हरि को तुम अति प्यारी,

    श्याम वर्ण सुकुमारी ।

    प्रेम अजब है उनका,

    तुमसे कैसा नाता ॥

    हमारी विपद हरो तुम,

    कृपा करो माता ॥ 


    ॥ जय तुलसी माता...॥


    जय जय तुलसी माता,

    मैया जय तुलसी माता ।

    सब जग की सुख दाता,

    सबकी वर माता ॥


    4. जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी - आरती -Jai Ambe Gauri Maiya Jai Shyama Gauri


    जय अम्बे गौरी,

    मैया जय श्यामा गौरी ।

    तुमको निशदिन ध्यावत,

    हरि ब्रह्मा शिवरी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    मांग सिंदूर विराजत,

    टीको मृगमद को ।

    उज्ज्वल से दोउ नैना,

    चंद्रवदन नीको ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    कनक समान कलेवर,

    रक्ताम्बर राजै ।

    रक्तपुष्प गल माला,

    कंठन पर साजै ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    केहरि वाहन राजत,

    खड्ग खप्पर धारी ।

    सुर-नर-मुनिजन सेवत,

    तिनके दुखहारी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    कानन कुण्डल शोभित,

    नासाग्रे मोती ।

    कोटिक चंद्र दिवाकर,

    सम राजत ज्योती ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    शुंभ-निशुंभ बिदारे,

    महिषासुर घाती ।

    धूम्र विलोचन नैना,

    निशदिन मदमाती ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    चण्ड-मुण्ड संहारे,

    शोणित बीज हरे ।

    मधु-कैटभ दोउ मारे,

    सुर भयहीन करे ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    ब्रह्माणी, रूद्राणी,

    तुम कमला रानी ।

    आगम निगम बखानी,

    तुम शिव पटरानी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    चौंसठ योगिनी मंगल गावत,

    नृत्य करत भैरों ।

    बाजत ताल मृदंगा,

    अरू बाजत डमरू ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    तुम ही जग की माता,

    तुम ही हो भरता,

    भक्तन की दुख हरता ।

    सुख संपति करता ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    भुजा चार अति शोभित,

    वर मुद्रा धारी । [खड्ग खप्पर धारी]

    मनवांछित फल पावत,

    सेवत नर नारी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    कंचन थाल विराजत,

    अगर कपूर बाती ।

    श्रीमालकेतु में राजत,

    कोटि रतन ज्योती ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    श्री अंबेजी की आरति,

    जो कोइ नर गावे ।

    कहत शिवानंद स्वामी,

    सुख-संपति पावे ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी..॥


    जय अम्बे गौरी,

    मैया जय श्यामा गौरी ।



    5. सन्तोषी माता आरती -Santoshi Mata Aarti


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ।

    अपने सेवक जन की,

    सुख सम्पति दाता ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    सुन्दर चीर सुनहरी,

    मां धारण कीन्हो ।

    हीरा पन्ना दमके,

    तन श्रृंगार लीन्हो ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    गेरू लाल छटा छबि,

    बदन कमल सोहे ।

    मंद हंसत करुणामयी,

    त्रिभुवन जन मोहे ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    स्वर्ण सिंहासन बैठी,

    चंवर दुरे प्यारे ।

    धूप, दीप, मधु, मेवा,

    भोज धरे न्यारे ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    गुड़ अरु चना परम प्रिय,

    तामें संतोष कियो ।

    संतोषी कहलाई,

    भक्तन वैभव दियो ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    शुक्रवार प्रिय मानत,

    आज दिवस सोही ।

    भक्त मंडली छाई,

    कथा सुनत मोही ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    मंदिर जग मग ज्योति,

    मंगल ध्वनि छाई ।

    विनय करें हम सेवक,

    चरनन सिर नाई ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    भक्ति भावमय पूजा,

    अंगीकृत कीजै ।

    जो मन बसे हमारे,

    इच्छित फल दीजै ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    दुखी दारिद्री रोगी,

    संकट मुक्त किए ।

    बहु धन धान्य भरे घर,

    सुख सौभाग्य दिए ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    ध्यान धरे जो तेरा,

    वांछित फल पायो ।

    पूजा कथा श्रवण कर,

    घर आनन्द आयो ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    चरण गहे की लज्जा,

    रखियो जगदम्बे ।

    संकट तू ही निवारे,

    दयामयी अम्बे ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ॥


    सन्तोषी माता की आरती,

    जो कोई जन गावे ।

    रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति,

    जी भर के पावे ॥


    जय सन्तोषी माता,

    मैया जय सन्तोषी माता ।

    अपने सेवक जन की,

    सुख सम्पति दाता ॥



    6. श्री राम स्तुति -Shri Ram Stuti


    श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

    हरण भवभय दारुणं ।

    नव कंज लोचन कंज मुख

    कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥


    कन्दर्प अगणित अमित छवि

    नव नील नीरद सुन्दरं ।

    पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि

    नोमि जनक सुतावरं ॥२॥


    भजु दीनबन्धु दिनेश दानव

    दैत्य वंश निकन्दनं ।

    रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल

    चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥


    शिर मुकुट कुंडल तिलक

    चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।

    आजानु भुज शर चाप धर

    संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥


    इति वदति तुलसीदास शंकर

    शेष मुनि मन रंजनं ।

    मम् हृदय कंज निवास कुरु

    कामादि खलदल गंजनं ॥५॥


    मन जाहि राच्यो मिलहि सो

    वर सहज सुन्दर सांवरो ।

    करुणा निधान सुजान शील

    स्नेह जानत रावरो ॥६॥


    एहि भांति गौरी असीस सुन सिय

    सहित हिय हरषित अली।

    तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि

    मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥


    ॥सोरठा॥

    जानी गौरी अनुकूल सिय

    हिय हरषु न जाइ कहि ।

    मंजुल मंगल मूल वाम

    अङ्ग फरकन लगे।

    रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास



    7. शिव आरती - ॐ जय शिव ओंकारा -Shiv Aarti - Om Jai Shiv Omkara


    ॐ जय शिव ओंकारा,

    स्वामी जय शिव ओंकारा।

    ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,

    अर्द्धांगी धारा ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    एकानन चतुरानन

    पंचानन राजे ।

    हंसासन गरूड़ासन

    वृषवाहन साजे ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    दो भुज चार चतुर्भुज

    दसभुज अति सोहे ।

    त्रिगुण रूप निरखते

    त्रिभुवन जन मोहे ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    अक्षमाला वनमाला,

    मुण्डमाला धारी ।

    चंदन मृगमद सोहै,

    भाले शशिधारी ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    श्वेताम्बर पीताम्बर

    बाघम्बर अंगे ।

    सनकादिक गरुणादिक

    भूतादिक संगे ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    कर के मध्य कमंडल

    चक्र त्रिशूलधारी ।

    सुखकारी दुखहारी

    जगपालन कारी ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव

    जानत अविवेका ।

    प्रणवाक्षर में शोभित

    ये तीनों एका ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    त्रिगुणस्वामी जी की आरति

    जो कोइ नर गावे ।

    कहत शिवानंद स्वामी

    सुख संपति पावे ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    लक्ष्मी व सावित्री

    पार्वती संगा ।

    पार्वती अर्द्धांगी,

    शिवलहरी गंगा ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    पर्वत सोहैं पार्वती,

    शंकर कैलासा ।

    भांग धतूर का भोजन,

    भस्मी में वासा ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    जटा में गंग बहत है,

    गल मुण्डन माला ।

    शेष नाग लिपटावत,

    ओढ़त मृगछाला ॥

    जय शिव ओंकारा...॥


    काशी में विराजे विश्वनाथ,

    नंदी ब्रह्मचारी ।

    नित उठ दर्शन पावत,

    महिमा अति भारी ॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...॥


    ॐ जय शिव ओंकारा,

    स्वामी जय शिव ओंकारा।

    ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,

    अर्द्धांगी धारा ॥



    8. श्री बृहस्पति देव की आरती -Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti


    जय वृहस्पति देवा,

    ऊँ जय वृहस्पति देवा ।

    छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,

    कदली फल मेवा ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    तुम पूरण परमात्मा,

    तुम अन्तर्यामी ।

    जगतपिता जगदीश्वर,

    तुम सबके स्वामी ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    चरणामृत निज निर्मल,

    सब पातक हर्ता ।

    सकल मनोरथ दायक,

    कृपा करो भर्ता ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    तन, मन, धन अर्पण कर,

    जो जन शरण पड़े ।

    प्रभु प्रकट तब होकर,

    आकर द्घार खड़े ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    दीनदयाल दयानिधि,

    भक्तन हितकारी ।

    पाप दोष सब हर्ता,

    भव बंधन हारी ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    सकल मनोरथ दायक,

    सब संशय हारो ।

    विषय विकार मिटा‌ओ,

    संतन सुखकारी ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    जो को‌ई आरती तेरी,

    प्रेम सहित गावे ।

    जेठानन्द आनन्दकर,

    सो निश्चय पावे ॥


    ऊँ जय वृहस्पति देवा,

    जय वृहस्पति देवा ॥


    सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

    बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥


    9. तुलसी आरती - महारानी नमो-नमो -Tulsi Aarti - Maharani Namo Namo


    तुलसी महारानी नमो-नमो,

    हरि की पटरानी नमो-नमो ।


    धन तुलसी पूरण तप कीनो,

    शालिग्राम बनी पटरानी ।

    जाके पत्र मंजरी कोमल,

    श्रीपति कमल चरण लपटानी ॥


    धूप-दीप-नवैद्य आरती,

    पुष्पन की वर्षा बरसानी ।

    छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,

    बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥


    सभी सखी मैया तेरो यश गावें,

    भक्तिदान दीजै महारानी ।

    नमो-नमो तुलसी महारानी,

    तुलसी महारानी नमो-नमो ॥


    तुलसी महारानी नमो-नमो,

    हरि की पटरानी नमो-नमो ।



    10. श्री गणेश आरती -Shri Ganesh Aarti


    जय गणेश जय गणेश,

    जय गणेश देवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥


    एक दंत दयावंत,

    चार भुजा धारी ।

    माथे सिंदूर सोहे,

    मूसे की सवारी ॥


    जय गणेश जय गणेश,

    जय गणेश देवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥


    पान चढ़े फल चढ़े,

    और चढ़े मेवा ।

    लड्डुअन का भोग लगे,

    संत करें सेवा ॥


    जय गणेश जय गणेश,

    जय गणेश देवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥


    अंधन को आंख देत,

    कोढ़िन को काया ।

    बांझन को पुत्र देत,

    निर्धन को माया ॥


    जय गणेश जय गणेश,

    जय गणेश देवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥


    'सूर' श्याम शरण आए,

    सफल कीजे सेवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥


    जय गणेश जय गणेश,

    जय गणेश देवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥



    दीनन की लाज रखो,

    शंभु सुतकारी ।

    कामना को पूर्ण करो,

    जाऊं बलिहारी ॥


    जय गणेश जय गणेश,

    जय गणेश देवा ।

    माता जाकी पार्वती,

    पिता महादेवा ॥


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